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तमिन्न्वे॒३॒॑व स॑म॒ना स॑मा॒नम॒भि क्रत्वा॑ पुन॒ती धी॒तिर॑श्याः। स॒सस्य॒ चर्म॒न्नधि॒ चारु॒ पृश्ने॒रग्रे॑ रु॒प आरु॑पितं॒ जबा॑रु ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam in nv eva samanā samānam abhi kratvā punatī dhītir aśyāḥ | sasasya carmann adhi cāru pṛśner agre rupa ārupitaṁ jabāru ||

पद पाठ

तम्। इत्। नु। ए॒व। स॒म॒ना। स॒मा॒नम्। अ॒भि। क्रत्वा॑। पु॒न॒ती। धी॒तिः। अ॒श्याः॒। स॒सस्य॑। चर्म॑न्। अधि॑। चारु॑। पृश्नेः॑। अग्रे॑। रु॒पः। आरु॑पितम्। जबा॑रु॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:5» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विवाहपरता से उपदेशविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये ! जिस (ससस्य) शयन करते हुए के (चर्मन्) चमड़े में (चारु) सुन्दर (जबारु) वेग करता हुआ वा आरूढ़ (आरुपितम्) आरोपण किया गया वा जो (पृश्नेः) अन्तरिक्ष के (अभि) सब ओर है उसके (अग्रे) आगे (अधि, रुपः) अधिरोपण करनेवाले की (क्रत्वा) उत्तम बुद्धि से (पुनती) पिता के सम्बन्ध से पवित्र करती हुई (धीतिः) उत्तम गुणों के धारण करनेवाली (समना) तुल्य हुई (तम्) (इत्) उसी (समानम्) समान पति को (नु, एव) शीघ्र ही (अश्याः) प्राप्त हो ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो कन्या अपने समान वर और ब्रह्मचारी अपने तुल्य कन्या के साथ विवाह करे तो अन्तरिक्ष के मध्य में ईश्वर से स्थापित सूर्य्य चन्द्रमा और नक्षत्रों के तुल्य शोभित होते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विवाहपरत्वेनोपदेशविषयमाह ॥

अन्वय:

हे कन्ये ! यस्य ससस्य चर्मन् चारु जबार्वारुपितं पृश्नेरभ्यस्ति तदग्रेऽधिरुपः क्रत्वा पुनती धीतिः समना सती तमिदेव समानं पतिं न्वेवाश्याः ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (इत्) अपि (नु) (एव) (समना) सदृशी (समानम्) तुल्यं पतिम् (अभि) (क्रत्वा) प्रज्ञया (पुनती) पित्रा पवित्रयन्ती (धीतिः) शुभगुणधारिका (अश्याः) प्राप्नुयाः (ससस्य) स्वपतः (चर्मन्) चर्मणि (अधि) उपरि (चारु) सुन्दरम् (पृश्नेः) अन्तरिक्षस्य (अग्रे) पुरस्तात् (रुपः) आरोपणकर्तुः। अत्र कर्त्तरि क्विप्। (आरुपितम्) (जबारु) जवमानमारूढम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - यदि कन्या स्वसदृशं वरं ब्रह्मचारी स्वतुल्यां कन्याञ्चोपयच्छेत् तर्ह्यन्तरिक्षस्य मध्य ईश्वरेण स्थापितः सविता चन्द्रो नक्षत्राणीव सुशोभेते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी कन्या आपल्याप्रमाणे असणाऱ्या वराबरोबर व जो ब्रह्मचारी आपल्याप्रमाणे असणाऱ्या कन्येबरोबर विवाह करतो तेव्हा ते ईश्वरनिर्मित सूर्य-चंद्र व नक्षत्रांप्रमाणे शोभून दिसतात. ॥ ७ ॥